फायर इंजीनियरिंग में ऐसे करें करियर की शुरुवात

आग लगने पर उसे बुझाने के लिए ऐसा आदमी या ऐसी टीम चाहिए जो आग की किस्म, आग लगने के कारण, आग बुझाने के तरीके, आग बुझाने के सामान और आग में घिरे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का हुनर रखती हो। जाहिर है यह ऐसी जानकारी नहीं जिसे यूं ही पूछ कर या पढ़ कर जान लिया जाए। इसकी पढ़ाई भी होती है और इसका प्रशिक्षण भी दिया जाता है। एक गुण ऐसा है जिसके बिना यह पढ़ाई और प्रशिक्षण काम नहीं आ पाएगा-वह है साहस और सूझबूझ का सही मिश्रण। इस क्षेत्र में फायरमैन से लेकर चीफ फायर अफसर तक बन सकते हैं। जो लोग आग से उपजी चुनौतियों का सामना करते हुए करियर की बुलंदी तक पहुंचना चाहते हैं वे डिप्लोमा से लेकर बी.ई. (फायर) की डिग्री प्राप्त कर निम्न पदों तक पहुंच सकते हैं।..

फायरमैन: वह व्यक्ति जो सीधे-सीधे आग से जूझता है। फायरमैन की टीम हर फायर स्टेशन में तैनात होती है।

लीडिंग फायरमैन: फायरमैन के बाद विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण कर लीडिंग फायरमैन बन सकते हैं।

सब-अफसर: किसी भी फायर टैंडर का लीडर सब-अफसर होता है जिसकी कमान में फायरमैन और लीडिंग फायरमैन होते हैं। यह परिस्थिति का आकलन कर अपनी टीम का मार्गदर्शन करता है कि किस प्रकार से कम से कम नुक्सान सहते हुए आग को बुझाया जा सके।

स्टेशन अफसर: किसी भी फायर स्टेशन का प्रमुख स्टेशन अफसर होता है जो न सिर्फ फायर स्टेशन की टीम को लीड करता है बल्कि पूरी जानकारी रखता है कि उसकी जिम्मेदारी के दायरे में आने वाले इलाके में किस तरह की इमारतें, फैक्ट्रियां या रिहायशी इलाका है जहां आग लग सकती है।

असिस्टैंट डिवीजनल अफसर: पूरे राज्य को अलग-अलग डिवीजनों में बांटा जाता है और हर डिवीजन की जिम्मेदारी असिस्टैंट डिवीजनल अफसर की होती है जो कार्य और इलाके के हिसाब से कई हो सकते हैं। इलाके में बनने वाली इमारतों में आग बुझाने के इंतजाम सही हैं या नहीं, यह देखने-सुनने की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है।

डिवीजनल अफसर: डिवीजनल अफसर की जिम्मेदारी भी वही होती है जो असिस्टैंट डिवीजनल अफसर की होती है और तीन असिस्टैंट डिवीजनल अफसर पर एक डिवीजनल अफसर होता है।

डिप्टी चीफ फायर अफसर: पूरे फायर डिपार्टमैंट के समन्वय, कार्य, क्षेत्र विभाजन व अन्य प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ यह सुनिश्चित करना कि पूरा फायर डिपार्टमैंट हर परिस्थिति से निपटने के लिए सक्षम है, डिप्टी चीफ फायर अफसर जैसा अधिकारी ही देखता है।

चीफ फायर अफसर: चीफ फायर अफसर पूरे फायर डिपार्टमैंट का बॉस होता है जिसकी निगरानी, निर्देश, समन्वय और प्रेरणा से विभाग चलता है। पूरे राज्य में आग लगने की घटनाएं कम से कम हों और आग लगने पर उससे किस तरह पूरी तैयारी के साथ निपटना है, चीफ फायर अफसर की लीडरशिप तय करती है।

बेहद चुनौतीपूर्ण है यह क्षेत्र:- जाहिर है इस क्षेत्र में करियर निखर सकता है लेकिन इस करियर को चुनने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रहना जरूरी है। किसी भी आपात स्थिति में बड़े ही धैर्य और सूझ-बूझ से काम करना यदि आता है तो इस ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। यह बताना जरूरी है कि आग कितना नुक्सान कर सकती है। गत कुछ महीनों में आग लगने की ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें न सिर्फ लाखों का नुक्सान हुआ है बल्कि बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी हुई है। कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में लगी आग अभी लोगों की याद्दाश्त में बुझी नहीं जिसमें 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा नई दिल्ली एयरपोर्ट के कार्गो डिवीजन में लगी आग ने लाखों का नुक्सान कर दिया था। दिल्ली के मुनिरका के सी.एन.जी. स्टेशन में लगी आग ने 5 लोगों को मौत की नींद सुला दिया। कहने का तात्पर्य है कि करियर का चुनाव करने से पहले खुद को इस बात के लिए तैयार करना जरूरी है कि चुनौतियों की लपटें बड़ी ऊंची हैं।

कार्य का स्वरूप:- फायर डिपार्टमैंट से जुड़ना एक कामयाब करियर के साथ साथ जनसेवा भी है। फायर फाइटर्स का मुख्य काम आग लगने के कारणों का पता लगाना और उसे रोकने के उपायों का विशलेषण करना होता है। फायर फाइटिंग सिविल, इलैक्ट्रीकल, एनवायरनमैंटल इंजीनिरिंग से जुड़ा क्षेत्र है। मसलन आग बुझाने के यंत्रों की तकनीकी जानकारी, स्प्रिंक्लर सिस्टम, अलार्म, पानी की बौछार का सबसे सटीक इस्तेमाल, कम से कम समय और कम से कम संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा जान-माल की रक्षा करना उसका उद्देश्य होता है।

शैक्षणिक योग्यता:- डिप्लोमा या डिग्री में दाखिले के लिए कैमिस्ट्री, फिजिक्स या गणित विषय में 50 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं पास होना अनिवार्य है। कुछ पदों के लिए बी.ई. (फायर) डिग्री अनिवार्य है। इसमें प्रवेश के लिए ऑल इंडिया एंट्रैंस एग्जाम होता है।

शारीरिक योग्यता:- शैक्षणिक योग्यता के साथ इस फील्ड में करियर बनाने के लिए शारीरिक योग्यता भी देखी जाती है। पुरुषों के लिए न्यूनतम लंबाई 165 सैंटीमीटर, वजन 50 कि.ग्रा., वहीं महिलाएं कम से 157 सैंटीमीटर लंबी हों, वजन कम से कम 46 कि.ग्रा. हो। नजरें दोनों के लिए 6/6 होनी चाहिएं और उम्र 19 से 23 वर्ष के भीतर हो।

कौशल:- इस फील्ड के लिए जितनी जरूरत डिग्री की है, उससे ज्यादा जरूरत कुछ व्यक्तिगत योग्यताओं की भी है। आग बारूद से भरे कारखानों में लग सकती है और कैमिकल फैक्टरी में भी, घनी आबादी वाले इलाकों व जंगलों में। ऐसे में साहस, धैर्य के साथ लीडरशिप क्वालिटी, तेजी से फैसले लेने की क्षमता जरूरी है।

विभिन्न कोर्स:- डिप्लोमा इन फायर एंड सेफ्टी, पीजी. डिप्लोमा इन फायर एंड सेफ्टी, बीएससी. इन फायर इंजीनियरिंग, सर्टिफिकेट कोर्स इन फायर फाइटिंग, फायर टैक्नोलॉजी एंड इंडस्ट्रीयल सेफ्टी मैनेजमैंट, इंडस्ट्रीयल सेफ्टी सुपरवाइजर, रैसक्यू एंड फायर फाइटिंग जैसे कोर्स शामिल हैं। इनकी अवधि 6 महीने से लेकर 3 वर्ष तक है। कोर्स के दौरान आग बुझाने की तकनीकी जानकारी से लेकर जान-माल के बचाव के साइंटिफिक फॉर्मूले की जानकारी दी जाती है जैसे आग पर काबू पाने, खतरों से खेलने, उपकरणों का प्रयोग कैसे किया जाए आदि के गुण सिखाए जाते हैं।

अवसर:- दिल्ली इंस्टीच्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग के निदेशक वीरेंद्र गर्ग के मुताबिक इस फील्ड में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। पहले केवल महानगरों में फायर स्टेशन होते थे, आज हर जिले में फायर स्टेशन हैं। इसके अलावा आज हर सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में एक फायर इंजीनियर की नियुक्ति भी अनिवार्य कर दी गई है। फायर इंजीनियर की जरूरत अग्निशमन विभाग के अलावा आर्किटैक्चर और बिल्डिंग निर्माण, इंश्योरैंस एसैसमैंट, प्रोजैक्ट मैनेजमैंट, रिफाइनरी, गैस फैक्ट्री, निर्माण उद्योग, प्लास्टिक, एल.पी.जी. तथा कैमिकल प्लांट, बहुमंजिली इमारतों व एयरपोर्ट हर जगह इनकी खासी मांग है।

प्रमुख संस्थान:-

-इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टौक्नोलॉजी, खडगपुर, पश्चिम बंगाल

-राष्ट्रीय अग्रिशमन सेवा महाविद्यालय, पालम रोड, नागपुर, महाराष्ट्र -दिल्ली इंस्टीच्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग, नई दिल्ली

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